नमस्कार,
हालचाल ठीके बा. २१ फरवरी से दमा की चपेट में रहलीं ह. अब ठीक होता. आज महाविद्यालय के व्हाट्स अप ग्रुप में सूचना रहल ह कि आज राष्ट्रीय सेवा योजना की और से विश्व महिला दिवस मनावल जाई आ महाविद्यालय में कार्य रत डा. सरिता कुमारी की कैंसर के कारण असामयिक निधन पर श्रद्धांजलि दीहल जाई. हमहूँ कालेज चली गउइं.
सरिता जी के श्रद्धा सुमन अर्पित कईल गौउवे. सब लोग उनकी व्यक्तित्व की विशेषता के चर्चा करुये. आर्थिक रूप से उच्च स्तर के होखले के बावजूद यस. सी. से महिला के आयोग से प्रोफ़ेसर भइल अपने आप में बड़हन बाति रहे. जिज्ञासु स्वभाव के लोग अच्छा शिक्षक होला. हरदम कुछु जाने आ लिखेके कोशिश सरिता जी करत रहली. एक बेर कहली" दो महिलायें एक पुरुष को बेतरह चाहती हैं किन्तु दोनों मिलकर उस पुरुष की जिंदगी के नरक बना देली" (सास और बहू ).
आज महिला दिवस पर कारपोरेट की प्रचार की कारण सब महिला लोग के बधाई देता शुभकामना देता. उपहार देता. बाहर जाके बढ़िया खाना खा लेता. ट महिला दिवस पर कुछु कमाई बढ़ी जाई.भारत के पढ़ल लिखल लोग जौना में हमहूँ हइ. शाब्दिक अर्थ की हिसाब से सामान्य ज्ञान के प्रयोग का के काम चला लेला. एसे ई होला की हमनीका लाल बुझक्कड़ होक रही जिले जा.
अब बताईं कि महिला पुरुष के समाज में एके स्थिति बा. एक तरह के अधिकार बा. एके समान मजदूरी बा. घर में पानी मांगे के हो त केसे कहल जाला. अबो तमाम लोग बा जे मानेला की मेहरारुन के बुद्धि ना होला. उनुका गणित ना आवेला. त्रिया चरित्र के बात लोग कहत रहेला. पुरुष के चरित्र में उहे बाति बड़ाई हो जाई महिला खातिर बाउर. त महिला आ पुरुष अपनी अपनी मन में झांकि के देखे कि का करेके चाही. तब शायद सबका कुछु अजोर होई. एकरी ख्जातिर ई जाने के परी की देश विदेश की मेहरारुन के का समस्या बा आ ओकर समाधान के खोज पूरी दुनिया के लोग कौनी तरह से करता.
अखबार, टी वी , सोसल मीडिया के पहुँच अबे बहुत कम लोग तक बा. पढ़ल लोग परीक्षा तक के पढ़ाई तक से मतलब राखेला. अबे त हमनीका अपनी अधिकार की बारे में जानते नईखी जां त महिला की बारे में कैसे सोचल जाई. लेकिन ४७ से १८ तक आवत आवत भारत में तस्वीर बहुत बदली गइल बा. बाकी, प्रधान पति और प्रधान पुत्र के रुक्का अब्बो चलता. एसे हाकिम लोग के भी फ़ायदा बा आ राज दल की नेता लोग के भी.
आज बिहाने से हमरी दिमाग में काम वाली दाई लोग के चेहरा नाचता. स्कूटी पर सवार वर्किंग क्लास के महिला, तथा पढ़े जाये वाली लड़की लोग के चेहरा भी आवता. पूना की निर्माणाधीन बिल्डिंग में अपनी लइकन के लेके काम करे वाली महिला के चित्र भी घूमता. सड़ाक पर गिट्टी फेंकत महिला के चित्र भी बा. गाँव देहात ,में खेत में मजूरी करे वाली महिला के चित्र भी बा. अपनी चचेरी दादी, माता. बहन पत्नी, बेटी सबकर चित्र सामने नाचता. कहाँ से समता समानता आई. अबे लड़ाई भारी बा.
सबका आपन आपन लड़ाई लड़के पड़ी. अशिक्षा से लड़ाई, अंधविश्वास से लड़ाई, समानता की अधिकार के लड़ाई, मजूरी के लड़ाई. मानव बनला के लड़ाई.
जब सब जागे लागल त राजतन्त्र गईल , असमानता भी जाई, लागल रहे के चाही.
ए.बी.ए. देर हो गईल.
फेरु भेंट होई.
नमस्कार,
हालचाल ठीके बा. २१ फरवरी से दमा की चपेट में रहलीं ह. अब ठीक होता. आज महाविद्यालय के व्हाट्स अप ग्रुप में सूचना रहल ह कि आज राष्ट्रीय सेवा योजना की और से विश्व महिला दिवस मनावल जाई आ महाविद्यालय में कार्य रत डा. सरिता कुमारी की कैंसर के कारण असामयिक निधन पर श्रद्धांजलि दीहल जाई. हमहूँ कालेज चली गउइं.
सरिता जी के श्रद्धा सुमन अर्पित कईल गौउवे. सब लोग उनकी व्यक्तित्व की विशेषता के चर्चा करुये. आर्थिक रूप से उच्च स्तर के होखले के बावजूद यस. सी. से महिला के आयोग से प्रोफ़ेसर भइल अपने आप में बड़हन बाति रहे. जिज्ञासु स्वभाव के लोग अच्छा शिक्षक होला. हरदम कुछु जाने आ लिखेके कोशिश सरिता जी करत रहली. एक बेर कहली" दो महिलायें एक पुरुष को बेतरह चाहती हैं किन्तु दोनों मिलकर उस पुरुष की जिंदगी के नरक बना देली" (सास और बहू ).
आज महिला दिवस पर कारपोरेट की प्रचार की कारण सब महिला लोग के बधाई देता शुभकामना देता. उपहार देता. बाहर जाके बढ़िया खाना खा लेता. ट महिला दिवस पर कुछु कमाई बढ़ी जाई.भारत के पढ़ल लिखल लोग जौना में हमहूँ हइ. शाब्दिक अर्थ की हिसाब से सामान्य ज्ञान के प्रयोग का के काम चला लेला. एसे ई होला की हमनीका लाल बुझक्कड़ होक रही जिले जा.
अब बताईं कि महिला पुरुष के समाज में एके स्थिति बा. एक तरह के अधिकार बा. एके समान मजदूरी बा. घर में पानी मांगे के हो त केसे कहल जाला. अबो तमाम लोग बा जे मानेला की मेहरारुन के बुद्धि ना होला. उनुका गणित ना आवेला. त्रिया चरित्र के बात लोग कहत रहेला. पुरुष के चरित्र में उहे बाति बड़ाई हो जाई महिला खातिर बाउर. त महिला आ पुरुष अपनी अपनी मन में झांकि के देखे कि का करेके चाही. तब शायद सबका कुछु अजोर होई. एकरी ख्जातिर ई जाने के परी की देश विदेश की मेहरारुन के का समस्या बा आ ओकर समाधान के खोज पूरी दुनिया के लोग कौनी तरह से करता.
अखबार, टी वी , सोसल मीडिया के पहुँच अबे बहुत कम लोग तक बा. पढ़ल लोग परीक्षा तक के पढ़ाई तक से मतलब राखेला. अबे त हमनीका अपनी अधिकार की बारे में जानते नईखी जां त महिला की बारे में कैसे सोचल जाई. लेकिन ४७ से १८ तक आवत आवत भारत में तस्वीर बहुत बदली गइल बा. बाकी, प्रधान पति और प्रधान पुत्र के रुक्का अब्बो चलता. एसे हाकिम लोग के भी फ़ायदा बा आ राज दल की नेता लोग के भी.
आज बिहाने से हमरी दिमाग में काम वाली दाई लोग के चेहरा नाचता. स्कूटी पर सवार वर्किंग क्लास के महिला, तथा पढ़े जाये वाली लड़की लोग के चेहरा भी आवता. पूना की निर्माणाधीन बिल्डिंग में अपनी लइकन के लेके काम करे वाली महिला के चित्र भी घूमता. सड़ाक पर गिट्टी फेंकत महिला के चित्र भी बा. गाँव देहात ,में खेत में मजूरी करे वाली महिला के चित्र भी बा. अपनी चचेरी दादी, माता. बहन पत्नी, बेटी सबकर चित्र सामने नाचता. कहाँ से समता समानता आई. अबे लड़ाई भारी बा.
सबका आपन आपन लड़ाई लड़के पड़ी. अशिक्षा से लड़ाई, अंधविश्वास से लड़ाई, समानता की अधिकार के लड़ाई, मजूरी के लड़ाई. मानव बनला के लड़ाई.
जब सब जागे लागल त राजतन्त्र गईल , असमानता भी जाई, लागल रहे के चाही.
ए.बी.ए. देर हो गईल.
फेरु भेंट होई.
नमस्कार,